हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने कहां,अल्लाह को याद करना उस मोहाफ़िज़ की तरह है जो इच्छाओं की यलग़ार के सामने हमारी और हमारे दिल की हिफ़ाज़त करता है।
दिल, मुक़ाबला करने में कमज़ोर है। हमारा दिल, हमारी रूह, प्रतिरोध के लेहाज़ से बहुत कमज़ोर है। बहुत सी चीज़ों से हम प्रभावित हो जाते हैं, हमारा मन मुख़्तलिफ़ तरह के आकर्षणों की ओर मुड़ जाता है।
अगर हम चाहते हैं कि हमारा दिल -जो अल्लाह की जगह, अल्लाह का ठिकाना है, इंसान के वजूद में सबसे बुलंद मक़ाम, इंसान का दिल है, वही अंतरात्मा और इंसान के वजूद की हक़ीक़त है- पाक व पाकीज़ा रहे, तो इसके लिए एक मोहाफ़ज़ ज़रूरी है और वह मोहाफ़िज़ अल्लाह का ज़िक्र है।
अल्लाह की याद, दिल को, मुख़्तलिफ़ तरह की इच्छाओं की बेलगाम यलग़ार की ज़द में नहीं आने देती कि वह फिसल जाए। अल्लाह की याद, मन को करप्शन और मुख़्तलिफ़ तरह के गुमराह करने वाले आकर्षणों में घिरने से बचाती है.ज़िक्र यानी अल्लाह की याद इस बात का सबब बनती है कि हम सीधे रास्ते पर चलें, आगे बढ़ें।
इमाम ख़ामेनेई,